आत्म-विस्मृति से उबरने का प्रस्थान बिंदु
सरयू के 'ब्रह्मद्रव' से पोषित पावन नगरी अयोध्या जी में वहां के शास्ता राम की जन्मभूमिमंदिर का पुनरुद्धार भारतीय समाज के लिये उत्सव मनाने का अपूर्व अवसर है, जिसका उसी रूप में सत्कार भी हुआ है। पांच सदियों की प्रतीक्षा, पीड़ा और उपेक्षा अब बीत चुकी है। सब ओर आनंद है, मंगल है। अयोध्या जी अपना स्वरूप पाकर प्रमुदित हैं और लोक अपने तप की सिद्धि का साक्षात कर। ऐसा महाभाव भारत ने शायद ही पहले देखा हो। श्रीरामजन्मभूमि मंदिर का पुनरुद्धार मात्र एक घटना नहीं है, प्रतिमान है। अलबत्ता, इसने हमें कई बिंदुओं पर विचार करने को प्रेरित किया और कई जागतिक रीतियों व सामाजिक दुर्बलताओं को समझने की प्रशस्त दृष्टि दी है। आक्रांत समाज दोहरी विपरीतताओं से गुजरता है। आक्रांता के प्रभाव व बल से कुछ उसके अनुगामी हो जाते हैं, कुछ उसका उसी के तरीके से प्रतिरोध करने के चलते पथच्युत हो जाते हैं। ऐसे समाज को पुनर्जागरण के लिए प्रोत्साहित करना बेहद दुरूह होता है। भारत ने यह त्रासदी अनेक बार झेली है। यही कारण है कि हमारी 'व्यथा की वीथियां' लंबी रही हैं। हम सदियों तक खंडहरों के रखवार बने रहे, वहीं ठहरे रहे